हिन्दवी फाउन्डेशन द्वारा संचालित कीकट प्रकाशन का उद्देश्य सामाजिक-सांस्कृतिक और साहित्यिक उत्थान है। हमारी संस्था व्यवसायिक नहीं बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव के लिए प्रतिबद्ध है। हम एक विश्वसनीय प्रतिमान स्थापित करने के लिए कटिबद्ध हैं।
कीकट नाम का एक ऐतिहासिक संदर्भ है। एक क्षेत्र के रूप में कीकट का सबसे पहला उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में प्राप्त होता है, जहां इस क्षेत्र के राजा प्रमंगद का वर्णन है। ऋग्वेद कीकट का उल्लेख एक लड़ाका जनजाति के रूप में करता है, जो आर्यों की सीमाओं पर रहते थे और वैदिक कर्मकांड नहीं करते थे।यास्क के निरुक्त में भी कीकट की चर्चा है, जो एक अनार्य देश था। यद्यपि ऋग्वेद और निरुक्त में कीकट की भौगोलिक अवस्थिति के विषय में कुछ स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती, पर उत्तरवर्ती स्रोतों में कीकट को मगध के पर्यायवाची के रूप में प्रयुक्त किया गया है। वायुपुराण में यह कहा गया है कि कीकट एक अपवित्र स्थान है, जहां केवल गया और राजगृह ही तीर्थ रूप में सम्माननीय हैं। महाभारत में भी कीकट का उल्लेख है, जहां यह कहा गया है कि कीकट समेत अन्य प्रदेशों में, जहां लोगों का कोई धर्म नहीं, वहाँ जाने से बचना चाहिए।
कीकट मगध का ही सबसे प्राचीन नाम है। यह प्रतिरोध की धरती रही है, जहां ब्राह्मणवादी आर्य-संस्कृति को सहजता से कभी स्वीकार नहीं किया गया। कीकट ने कभी भी आर्यों के सांस्कृतिक वर्चस्ववाद के सामने घुटने नहीं टेके, शायद यही कारण है कि कीकट को ब्राह्मणवादी साहित्य हमेशा एक 'व्रात्य प्रदेश' के रूप में देखता रहा। आगे चलकर वैदिक सांस्कृतिक वर्चस्ववाद को जब बुद्ध और महावीर के द्वारा चुनौती दी गई, तब भी कीकट इस प्रतिरोध का सबसे उर्वर केंद्र बना। कीकट की विशेषता यह रही कि इसने जन्म-आधारित वर्ण व्यवस्था के नियमों को शासकीय परंपरा का आधार नहीं बनाया, बल्कि हमेशा ही योग्यता को ज्यादा महत्व दिया। पुराणों में जिन गैर-क्षत्रिय राजवंशों का उल्लेख है- नन्द, मौर्य आदि, उनमें से अधिकांश का संबंध कीकट से रहा।
जो ऐतिहासिक सांस्कृतिक परंपरा कीकट की रही, उसी परंपरा का को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से कीकट प्रकाशन कार्यरत है।